मरना तो सबको है
अब तक रहा है कौन ?
कि हम रहेगे ?
मरने जीने की जद्दोजहद मे भी
कहीं न कहीं
साबूत सा बचा होता हैं
एक मौन
यह बचा मौन ही होता हैं
शब्दो में छिपा कहीं
बीजों मे छिपे दरख्त की तरह
यही बचकर कहता है
हम बचे रहेगें
--------------- शिव शम्भु शर्मा
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