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ऎसा नही है
कि दशहरें में रावण को पहली बार जलाया
हर बरस ऎसा ही होता है
रावण मरेगा नही कभी
रावण अमर है
ऎसा यह भी नही है
कि दिवाली में दीप पहली बार जलाया
हर बरस ऎसा ही होता है
अंधकार मिटेगा नही कभी
अंधेरा अजर है
फ़िर क्यों नही समझते गरीब देश के लोग
भ्रष्टाचार के बाद इस देश के
त्यौहार दुसरे बडे अजगर है
क्यों बाते करते हो आकाश की उजाले की और बे मरम्मत घर है
स्फ़ुर्ति ताजगी के लिये तो काफ़ी एक अवसर है
दिखाना ही है तो दिखाओ किसी दुसरे अमीर देश को
अपनों के बीच अपने को ही दिखाना क्या यही शेष भर है ?
त्यौहार सादगी से भी मनाये जा सकते है
अरबों खरबों जलाने से बचाये जा सकते है
कोई परंपरा नष्ट नही होगी आखिर किस बात का डर है ?
बहुत हुआ रहम करो अब कही ऎसा न कहे कोई
के मुफ़लिसों से भरें वतन में खाली डब्बों के सर है ।
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