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Tuesday 27 November 2012

अहिर्निश समुद्र ।


समुद्र तट पर
अबोध बच्चें
और उन्ही की तरह के लोग
मुफ़्त के बेशुमार बिखरे  रेत पर
उछलते कूदते खेलते
बनाते हैं
सपनों के अपने-अपने धरौदें

रेत मुफ़्त की नही होती
कई बडे पत्थर अपना सीना तोडकर चुकाते रहते है मूल्य
लगातार लुढकते टूटते और बिखरते रहे है सदियों से
संग-संग  बहते जाते है नदियों से
तब बनते हैं रेत ---समुद्र जानता है

एक बडी लहर आती है
सारे घरौदे समेट ले जाती है

बच्चे कहां समझ पाते है ? लहरों का आमंत्रण !
और जारी रहता है यही खेल

कैमरा लटकाये घुमते
कुछ बच्चे अपनी उम्र से पहले ही सयानें हो चले है
अपने बनायें घरौदों का खीच लेते हैं तश्वीर

लिख देते है उन पर अपना नाम और पता
और लगा देते है एकस्व स्वामित्व की मुहर

नाम तश्वीर से बडा  होता है
कही भूल-चूक न हो जाय
इसलिये पता भी होता है

इन बेशुमार तश्वीरो की किताब के  नाम का एक बाज़ार है
जहां दुबारा छापी जाती है तश्वीरें
कीमतें लगायी जाती है
होता है मूल्यांकन
और बाँटे जाते है पुरस्कार

नाम की निगोडी यह लालच ही कराती है चोरियां
टूटती हैं तिजोरियां
चोरों के घर भी होती है चोरियां

इन तश्वीरों से भरी जाती है बोरियां
सील मुहरबंद लाह से जिसके मुँह पर
लिखा होता है --काँपी राइट एक्ट के अधीन सुरक्षित

मुफ़्त की हवा पानी खा पीकर
महज एक शक्ल देने की एवज में
नाम की इतनी बडी कवायद मे कही कोई अर्थ बचता है क्या ?
नाम से बडा कुछ नही होता क्या ?

देखता इस व्यापार में डूबते उतराते
कृतध्न मनुष्य को
और ठठा कर  हंसता हैं ---अहिर्निश समुद्र ।

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