अनावृत
स्वागत है आपका ।
Tuesday 6 November 2012
आईना
झूठों की लम्बी कतार में
वाह वाही के सिवा
जो नही सुन सकते
सच
आलोचना
और
निचोड
अपनी रचना के विरुद्ध
जरूरी नही सभी आईने
समतल दर्पण हो
उत्तल
अवतल भी हो सकते है
जो नही देखते आईना
जीते तो वे भी है
फ़िर जरूरत क्या रही होगी
कुछ रचने की ??
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