तुम्हारा प्रेम भी
अहसान जताने के दायरे की
एक छोटी सी डीबियां में बंद है
बिल्कुल उस दान की तरह
जिसे किसी मंदिर के प्राचीर पर
संगमरमर में
कैद करवाता है दाता
अपना नाम
नाम के फ़ेर मे तुम नही जान पाओगी
उन लोगो को जो चुप रहकर
करते रहते है - प्रेम
बिना जताये किसी को बताये
किसी गुप्तदान की तरह
निर्बन्ध
ओ चंचला !
तुम नही समझ पाओगी
चुप्पियों के हृदय में छुपे
उस उन्मुक्त प्रेम को
नाम की कैद से परे
उस श्रम को जो
देखता है
समझता है
दया और करुणा के
बीच का अंतर ।
---------श्श्श..!
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