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यह साल अंत में रौद कर
हमे डंसता हुआ जा रहा है
इस भयंकर बियावान-सरीखे से हुए जा रहे देश से
कभी नही लौटने के लिये
तुम्हे अलविदा कह कर भी
यह टीस नही जा पा रही है
रह रह कर उठती है हर रोज
और तुम लौटती रहती हो
क्यो कम नही होती है किसी भी तरह
यह मर्माहत व्यथा समझ नही पाता
क्रुरता पैशाचिकता ऎसी ?
कि पशु पिशाच भी सहम जाए
लडकी होने की इतनी बडी सजा
इतना घोर जघन्य अपराध ?
इसी देश के मूल की वैज्ञानिक लडकी दुरस्थ देश से
अंतरिक्ष में जा सकती है और
इसी देश की राजधानी मे एक लडकी अपने घर तक भी
नही जा सकती है
बुद्ध गांधी का यह देश क्या देश कहा जा सकता है ?
जहां ऎसी सडी गली नकारा सरकारें चलती हो
जो सिफ़ारिश कर फ़ांसी के अभियुक्तों को बचाती हो
एक अंधेरे युग के बूचडखाने की तरफ़ बढ रहा है देश
और जनता का सडक पर प्रदर्शन मांग लाजिमी है
निरूत्तर हो जाता हूं इस व्यवस्था पर ---
मै धन्यवाद देता हूं मीडियां को और उन तमाम देशवाशियों को
जो आज तक इस क्रूरता के खिलाफ़ आवाजे उठाये चल रहे है
और प्रार्थना करता हूं - उस दिवंगत आत्मा और अभिशप्त परिवार
को ईश्वर शांति दे ।
अलविदा दामिनी ! ।----श,श, शर्मा ३१/१२/२०१२
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