स्वागत है आपका ।

Tuesday 22 January 2013

हमारे लिये मरण है



हमारे लिये मरण है
****************************
हम शब्द नही उगाते
फ़सल उगाते है
हम कलम नही चलाते
हल चलाते है

तुम खीचते हो लकीर
कागज पर
कलम की धार से
शब्द सजाकर अर्थ बनाते हो
तुम्हारे अर्थ टहटहाते है

हम भी  खीचते है लकीर
जमीन पर
हलों के फ़ार से
बीज बोकर फ़सल उगाते है
हमारे फ़सल भी लहलहाते है

तुम कवि हो
हम किसान है

इतना अंतर क्यो है ?
हममें तुममें


बोलो
यह कैसा साहित्य है
जिसपर  तुम्हारा ही
केवल आधिपत्य है ?

तुम्हारा कथ्य महान है
और
हमारी आफ़त मे जान है
क्या किताबो मे लिखा
बस इतना ही ज्ञान है ?

यह कैसा व्याकरण है ?
पूजे जाते तुम्हारे चरण है
और हमारे लिये मरण है ॥
----------शिव शम्भु शर्मा ।

No comments:

Post a Comment