गिलहरियां
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काले चुहे बिलों में
छिपे रहते है
ये आदमी से कितना डरते है !
सफ़ेद चुहे आदमी से तो नही
पर घर से बाहर निकलनें से डरते है
ये दोनो बडे गंदे महकते है
और
गिलहरियां ! ओह ;
कितनी स्वछंद
कितनी निडर
फ़ुदकते हुए
तेजी से चढती उतरती पेड पर
और
अपनी झबरीली पूंछ फ़ैलाकर
कुछ कुतरती रहती है
सचमुच कितनी सुंदर लगती है
गिलहरियां
एकदम
निर्विकार ।
-----------शिव शम्भु शर्मा ।
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