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Thursday 31 January 2013

तुमसे मिलने आयेगे



नदी ओ नदी !
तुम कभी रूकती क्यों नही ?
बहती क्यों रहती हो ?
ढलानों की तरफ़ तो सभी फ़िसलते है
क्या तुम भी उन जैसी  ही हो

उचाईयों पर के पहाड कितने हरे भरे है

हम तपती नंगी  झुलसती घाटियां
सूखे पेड और सूखी झाडियां हैं
सूख कर भी हम नही  सूखते  है
तुम्हारी आस मे खडे राह तकते है

बारिश की फ़ुहारें  भी हम तक नही टिकती
वह भी तो  तुमसे ही जाकर मिलती

क्या तुम हमसे मिलने नही आओगी
हम तक पहुंचनें से कही तुम भी
तो नही डरती ?

हम तो किसी से नही डरते
चलो जाने दो
रहने दो
मत आना

भुरभुरे हो कर हम जब झड जायेगें
मिट्टी मे मिलकर
पानी के संग बह कर

तुमसे मिलने आयेगे
तुम आओ न आओ
हम तुमसे मिलने आयेगें।
-----------शिव शम्भु शर्मा ।

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