क्या अकेले तुम ही देश भक्त हो ?
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लोग जब समझना ही नही चाहते
फ़िर तुम क्यों बार बार
उन्हे समझाते रहते हो ?
ये लोग तुम्हे कभी नही समझ सकेगें
वो इसलिये तुम साधारण हो
और साधारण को साधारण कभी
असाधारण नही समझते
चुम्बक के समान ध्रुवों में विकर्षण होता है
क्या यह भी तुम्हे फ़िर से समझाना पडेगा ?
पगले ! यह सदियों का गुलाम देश है
यह रोग इसके खून में है
इतना अर्सा गुजर गया
और गुजर रहा है
क्या यह सबूत काफ़ी नही है
तुम्हारे समझने के लिये ?
ये लोग ब्रांडेड के पीछे भागते है
अंधी भेडॊ की तरह
तुम स्वयं भी तो कुछ नही समझते ?
क्या अकेले तुम ही देश भक्त हो ?
अब तुम्हे कितनी बार समझाउंगा
मेरे प्यारे
कि चुप रहा करो यहां
गूंगों की तरहा ।
-------------शिव शम्भु शर्मा ।
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