नदी में नहातें साधु ने कहा :
दर्द देना उसका स्वभाव है
और क्षमा करना मेरा स्वभाव है
हम दोनो अपने अपने स्वभाव को नही छोड सकते
महान वह है जो हर हाल में प्रतिहिंसा नही करते
चीटी आई और काटी
साधु पानी में खडा रहा अपने को कटवाता हुआ
दुसरे दिन
बिच्छु आया डंक मारा
साधु खडा रहा पानी मे डंसवाता
जानता था इसके काटने से कोई नही मरता
और अब भीड बढने लगी
होने लगी तैयारी एक बहुत बडी भक्ति पूजा की
तीसरे दिन-- भीड बडी थी
साधु पानी मे खडा था
इस बार एक जमीन का काला नाग आया
इसे देख साधु नंगा पानी से निकल भागा
तब से भाग रहा है
और नंगा है
और जिन लोगो ने काले नाग को नही देखा था
वे भक्त बनकर उसके पीछे पीछे आज तक दौड रहे है
तभी से साधु नदी में नही नहाते
केवल राख मलते है
जब मोक्ष के लिये नहाना बेहद जरूरी हो जाता है
तब पुरे देशभर के साधु एक बडा जमावडा करते है
और एक साथ डुबकी लगाते है
अनजान भक्त आज भी उनके साथ डुबकी लगाते है
और कुंभ नहाते है ।
----श्श्श ॥ ( एक सिरफ़िरे की दुर्लभ डायरी )
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