कविता सडने लगती है
उस तालाब की तरह
जो केवल
बारिश के भरोसे ही पडा रहता है
कवि भूल जाता है कि
कविता एक नदी है
और उसका बहते रहना
उतना ही रहना जरूरी है
जितनी जरूरी है भूख
दिन भर खटने के बाद की नींद
और वह प्यास जिस स्रोत से
निकलता रहता है पानी
निरंतर
--------------------शिव शम्भु शर्मा ।
उस तालाब की तरह
जो केवल
बारिश के भरोसे ही पडा रहता है
कवि भूल जाता है कि
कविता एक नदी है
और उसका बहते रहना
उतना ही रहना जरूरी है
जितनी जरूरी है भूख
दिन भर खटने के बाद की नींद
और वह प्यास जिस स्रोत से
निकलता रहता है पानी
निरंतर
--------------------शिव शम्भु शर्मा ।
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