अपने अपने प्रांत की बोलियों बोलती लाँबियाँ
दफ़्तरों में
कारखानों में
लगती है जैसे हो एक ट्रेन की ही बोगियाँ
ठहरती चलती अपने अपने प्रांत की ओर बस
केवल अपने क्षेत्र की ही सवारियों ढोती
अपने अपने प्रांत को आती - जाती
लोहे की गाडी लोहे की पटरियाँ
और लोहे के लोग
और एक माटी का देश
हर रोज जागता है लेकर जम्हायियाँ
लोहे के चने चबाकर
फ़िर सो जाता है
लोहे की चादर तानकर
-------------------शिव शम्भु शर्मा ।
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