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Sunday 24 March 2013

लाँबियाँ


अपने अपने प्रांत की बोलियों बोलती  लाँबियाँ
दफ़्तरों में
कारखानों में

लगती है जैसे हो एक ट्रेन की ही बोगियाँ
ठहरती चलती अपने अपने प्रांत की ओर बस
केवल अपने क्षेत्र  की  ही सवारियों ढोती
अपने अपने प्रांत को आती - जाती

लोहे की गाडी  लोहे की पटरियाँ
और लोहे के लोग

और एक माटी का  देश
हर रोज जागता है लेकर जम्हायियाँ
लोहे के चने चबाकर
फ़िर सो जाता है
लोहे की चादर तानकर
-------------------शिव शम्भु शर्मा ।

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