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Tuesday 26 March 2013

न जाने क्यो


सच की एक ऎसी ठोस जमीन पर खडा हूं
अकेला
यह जानते हुए अच्छी तरह
मेरे पीछे कोई नही आनेवाला

निहत्था हूं पथ पर
जबकि सामने है
हजारों झूठ
सच का तगमा लगाए
सच से भी ज्यादा चमकते
मुझे आईना दिखाते

अब ये आंखे किसी की चमक से
चुंधियाती नही है
न जाने क्यो ।
-----------------शिव शम्भु शर्मा ।

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