अनावृत
स्वागत है आपका ।
Thursday 7 March 2013
गुल
अब सुनी नही जाती
आवाजें उनकी
देखी नही जाती
मुसकुराहटें उनकी
जिनके महज दीदार के लिये
ठमक जाया करते थे लोग घंटो--पहरों
गुल खिला करते थे कभी
जिनकी रंगत को देखकर
गोया उनके चेहरें पे अब वो रौनक नही है ।
--------------------शिव शम्भु शर्मा
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