अहं विवेकहीन होता है
आंखों वाले अंधे की तरह
यह निर्णय नही कर पाता कि
क्या सही है क्या गलत ?
और क्या होना चाहिये ?
अहं में जिद अकडा होता है
अपना स्वार्थ जकडा होता है
सच जान कर भी आंखे बंद कर लेता है
शुतुरमुर्ग की तरह कभी-कभी
मात्र
स्वयं के सही होनें के सिवा
और कुछ नही देख पाता है
स्वयं का पक्षधर अहं
निष्पक्ष नही हो पाता है
यह सत्य से उपर चला जाता है
और
मित्रता को
सह्र्दयता को
चबा कर खा जाता है ।
-----------------शिव शम्भु शर्मा ।
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