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Friday 15 March 2013

बाज़ार



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बाज़ार एक कठोर सच है
दुनियाँ का

विरासत मे मिली वर्ण भेद और
हैसियत से मिली अर्थ भेद
दोनो को एक अर्थ देने की
एक मात्र जरूरत ही नही है

एक रीढ है
लोथों  को खडा रखने की कवायद का आदमी नामा
विमुख नही रह सकते हम
इसके व्यापार से

समाज  विज्ञान साहित्य चाहे जो भी हो
उसे आना ही पडता है

हांके लगानें या खरीदनें
आखिरकर
बाजार में ।
--------------शिव शम्भु शर्मा ।

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