आज की रात भी फ़िर वैसे ही ढलेगी
जैसे ढलती आयी है अब तक हर रोज
जैसे गलता है बर्फ़ हिमालय का हर रोज
जैसे चाँदी सी चमचमाती बहती है सदानीरा नदी हर रोज
वैसे ही हम फ़िर मिलेगें
भोर की सुखद हवा के नई अनुभुति के साथ
शुभ रात्रि ।
--------------शिव शम्भु शर्मा ।
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