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Friday 1 March 2013

शोर


हमारे पुरखें जैसे भी रहे हो पर
शरमायादार थे

तभी तो बची हुई है आज भी
शरम ओ हया थोडी- थोडी

वरना ये नए सफ़ेद पोश
सफ़ेदी उतार कर

नंगई का नाच नाचते
और इनके गुर्गे

ताली बजा-बजा कर
हराम के शोर से खराब कर देते हमारा जीना

यह दिन देखने से पहले
हम अपनी आंखे बंद कर लेते

और सागर के  किनारे ठहर कर
नम हवाए खा रहे होते
--------------शिव शम्भु शर्मा ।

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