स्वागत है आपका ।

Saturday 20 April 2013

मुंह लटकाए


सडक पर एक भीड उमडी चली आ रही है
नहर में फ़ाटक का पानी किसी ने छोडा हो जैसे

शोर तेज होती आ रही है
अब साफ़- साफ़ सुनाई दे रहा है

ठेले पर लदा माईक साथ-साथ  चलता है
झंडों के डंडे संभालें नौजवान
बैनरों में तैरते शब्द
सैकडों मुंहों के विविरों में लपलपाती जीभ
उगल रहे है
गर्म भाप बने शब्द उड जाते हैं

काफ़िला गुजर गया
एक शोर बिफ़र गया
एक जरूरी दस्तुर था जो निभा दिया गया
अब सब कुछ सामान्य है थिर है
जैसे कुछ हुआ ही नही है

नहर में कई बार इसी तरह छोडा जाता है पानी
अभ्यस्त  जानते है इस पानी की धार की पहुंच

कमजोरों गरीबों के सूखे परती खेत
धोखेबाज बादलों की आस में
हमेशा की तरह खडे  हैं
मुंह लटकाए ।
-----------------------शिव शम्भु शर्मा ।


No comments:

Post a Comment