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सामाजिक मानसिक विकृति कोई
एक दिन में नही आती
यह कोई तुफ़ान या जलजला नही है
इसे जन्म देता हैं हमारा ही समाज
विश्व के सबसे बडॆ लोकतंत्र बने रहने के पाखंड में अंधे
अपनी कायरता का भोजन और दब्बूपन का पानी
खिला-पिलाकर पालता है पोशता है बडा करता है
बना डालता है अपराधी
और फ़ैला देता है छूत का एक लाईलाज कोढ
फ़िर यही समाज करने लगता है हाहाकार चित्कार
जब होने लगता है बलात्कार दर बलात्कार
यह तब भी कोई ठोस कदम नही उठाता
जब पराकाष्ठा की हदें भी कर जाती हैं पार
मुट्ठी भर लोग आवाजे उठाते है आज
बाकी सब बस तमाशेबाज
गूंगें बोलते है अंधे लिखते है
और कुछ बहरें इसे सुनते है
ठीक वैसे ही जैसे
सुनी जाती है
नक्कार खानें में तूती की आवाज ।
-------------------------शिव शम्भु शर्मा
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सामाजिक मानसिक विकृति कोई
एक दिन में नही आती
यह कोई तुफ़ान या जलजला नही है
इसे जन्म देता हैं हमारा ही समाज
विश्व के सबसे बडॆ लोकतंत्र बने रहने के पाखंड में अंधे
अपनी कायरता का भोजन और दब्बूपन का पानी
खिला-पिलाकर पालता है पोशता है बडा करता है
बना डालता है अपराधी
और फ़ैला देता है छूत का एक लाईलाज कोढ
फ़िर यही समाज करने लगता है हाहाकार चित्कार
जब होने लगता है बलात्कार दर बलात्कार
यह तब भी कोई ठोस कदम नही उठाता
जब पराकाष्ठा की हदें भी कर जाती हैं पार
मुट्ठी भर लोग आवाजे उठाते है आज
बाकी सब बस तमाशेबाज
गूंगें बोलते है अंधे लिखते है
और कुछ बहरें इसे सुनते है
ठीक वैसे ही जैसे
सुनी जाती है
नक्कार खानें में तूती की आवाज ।
-------------------------शिव शम्भु शर्मा
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