अनावृत
स्वागत है आपका ।
Monday 15 April 2013
बेवकुफ़ चुप रहो
न जाने क्यो मन कसैला है इन दिनों
जब भी कुछ लिखना चाहता हूं
कोई चुपके से आकर कह जाता है कानों में
--बेवकुफ़ चुप रहो
यहां कुछ नही होगा
जो तुम चाहते हो
सिवा
लफ़्फ़ाजियों
बतौलाबाजियों
के
-----------------शिव शम्भु शर्मा ।
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