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सच ने हिम्मत जुटाकर
फ़िर एक बार सीना ताना
नथुनें फ़ुलाये
डट गया ईमानदार
होकर निडर
यह सोच कर
कोई हो ना हो
रहे ना रहे
उसका वजूद रहेगा हमेशा
सैकडों कैकडों के डंक
के संग
जहरीलें बिच्छुओं के चौतरफ़े दंश
झेल न पाया
गिर पडा लाश बन
तमाशबीनों के बीच
खकियायें कुत्ते उसे सुंघते रहे
जब तक न हुआ पुरा पंचनामा
आँखो पर काली पट्टी बाँधे
कानून की देवी के तराजू के दोनो पल्ले
बराबर थे
दूर कही से रोनें की घुटी-घुटी
मद्धिम आवाजें आ रही थी
और
मूँछे ऎठते हुए झूठ
तनकर खडा था
सीना ताने
उसी तरह
नथुनें फ़ुलाये ।
----------------शिव शम्भु शर्मा ।
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