छोटे-छोटे दलों में बंटे बुद्धिजीवि भी
छोटे-छोटे प्रादेशिक राजनीतिक दलों की तरह है
परस्पर बिखरे हुए
कभी न सुखने वाले नासुर की तरह बहते हुए
अपने अहं महत्वाकांक्षा के विकार से संलिप्त
अपनी आगामी चौदह पीढियों के निबंधित सुख संसाधनो के जुगाड मे
तल्लीन
कार्यरत
निरंतर ध्यान साधना रत
गिद्ध की तरह आकाश में मंडराते हुए
नोचते रहते है अपना -अपना हिस्सा
बडे कायदे और मासुमियत भरे सलीके से
जिसे पालता है बडे शौक से वह आसमान
जो इस जमीन का होकर भी
इस देश का नही है ।
-------शिव शम्भु शर्मा ।
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