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Wednesday 7 August 2013

नुमाइश

कविता
कविता न होकर
जब एक लत बन जाए

हर बात पर कविता
हर चीत पर कविता

पान बीडी सिगरेट तम्बाकु शराब
जैसे छुतहर व्यसनों की तरह

धुँआ उडाती
सडकों गलियारों कोनों में थूकती

उस पाजी रोग की तरह
जो  छूटने का नाम ही न ले

कविता
जब मात्र अपने नाम कमाने का जरिया
पुरस्कार पाने का  लालच
और मात्र आत्म प्रदर्शन का प्रपंच बनकर
एक बाजारू नचनियां की नुमाइश भर बन कर रह जाए

किसी इन्डस्ट्री का एक उत्पाद
बाजार में  बिकने की प्रतिस्पर्धा के कीमत की मुहर में बदल जाए
और
बंद हो  जाए चोरों मुनाफ़ाखोरों के गोदामों में
अनाजों से भरी लेबल लगी बोरियों की तरह
तब
उसका बहिष्कार कर देना एकदम उचित है
और
उसका नष्ट हो जाना तो सर्वथा उचित है ।
----------------------शिव शम्भु शर्मा ।


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