गधे को गधे ही गधा कहते है
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गधे को गधे ही गधा कहते है
ये गधे नही देख पाते
गधे का हथियार
उसकी दुलत्ति का
वह प्रचण्ड वार
उसका अल्मस्त
बिन्दास कर्मठ जीवन
बिना किसी शिकवे शिकायत के
उसका मस्ती में बेपरवाह रेंकना
जो अमूमन नसीब नही होता
सभी को
ये गधे नही समझ पाते
अच्छे भले को गधा कहकर
झूम उठते है
अपनी नासमझी का या फ़िर
कुंठायी समझी का ठींकरा
इस बेचारे के सर पर
फ़ोड कर
बेचारे बेचारो पर हँसकर
चिढकर
अपनी भडास मिटाते है
गधा
कहते है ।
--------------------शिव शम्भु शर्मा ।
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गधे को गधे ही गधा कहते है
ये गधे नही देख पाते
गधे का हथियार
उसकी दुलत्ति का
वह प्रचण्ड वार
उसका अल्मस्त
बिन्दास कर्मठ जीवन
बिना किसी शिकवे शिकायत के
उसका मस्ती में बेपरवाह रेंकना
जो अमूमन नसीब नही होता
सभी को
ये गधे नही समझ पाते
अच्छे भले को गधा कहकर
झूम उठते है
अपनी नासमझी का या फ़िर
कुंठायी समझी का ठींकरा
इस बेचारे के सर पर
फ़ोड कर
बेचारे बेचारो पर हँसकर
चिढकर
अपनी भडास मिटाते है
गधा
कहते है ।
--------------------शिव शम्भु शर्मा ।
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