सजधज कर वह चाँद को देर रात गये निहार रही थी
चाँद का कही पता नही था
जब चाँद निकला
तब खिलखिला कर हँस रहा था
अपने सगे के मनुहार पर
और
आदमी के आदमी होने के व्यापार पर ।
--------------शिव शम्भु शर्मा ।
चाँद का कही पता नही था
जब चाँद निकला
तब खिलखिला कर हँस रहा था
अपने सगे के मनुहार पर
और
आदमी के आदमी होने के व्यापार पर ।
--------------शिव शम्भु शर्मा ।
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