अमूर्त यात्रा ।
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वे लोग जो प्रशंसा ख्याति नही चाहते
अपनी दुकान नही लगाते
गुप्तदान कर जाते हैं
दया और करूणा के बीच का यह अंतर
वे नही समझ पाते कभी
जिनके नाम और पते खुदे होते है
संगेमरमर के आयतों में
और चस्पाये जाते है मंदिरों अस्पतालों
अनाथालयो की दीवारो पर
परिभाषाओं की परीधियों में कैद
अनजान
नही लांघ पाते कभी वह दीवार जिसके बाद ही
शुरू होती है जीवन की अथाह
अमूर्त यात्रा ।
-------------------शिव शम्भु शर्मा ।
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वे लोग जो प्रशंसा ख्याति नही चाहते
अपनी दुकान नही लगाते
गुप्तदान कर जाते हैं
दया और करूणा के बीच का यह अंतर
वे नही समझ पाते कभी
जिनके नाम और पते खुदे होते है
संगेमरमर के आयतों में
और चस्पाये जाते है मंदिरों अस्पतालों
अनाथालयो की दीवारो पर
परिभाषाओं की परीधियों में कैद
अनजान
नही लांघ पाते कभी वह दीवार जिसके बाद ही
शुरू होती है जीवन की अथाह
अमूर्त यात्रा ।
-------------------शिव शम्भु शर्मा ।
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