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कभी कभार
जब जाता हूं गाँव
तब यकीन मानो
पर लग जाते है
जमीन पर नही होते है-पांव
पहचान वाले पूछते है- हाल
अपने खेत खलिहान बधार जवार से
मिलकर
तब हरा हो जाता है मन
और चौडी हो जाती है छाती
कई जो मुझे नही जानते
आपस में कानाफ़ुसी से
पूछते है मेरी ’ जात ’
और दबंग मुझसे मेरे पिताजी नाम पूछते है
जैसे टटोल लेना चाहते हो मेरी ’ जात ’
और यहीं से निश्चित हो जाता है
उनके व्यवहार की श्रेणी
मेरे रहने से
नही रहने से
कितनी बडी चीज है मेरी
’ जात ’ ।
-----------------शिव शम्भु शर्मा ।
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