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मेरे रूकने से कोई सडक नही रूकती
और न सवारियां
करती है मेरा इंतजार
अपनी सीट जब्त करने से फ़ुर्सत कहाँ किसी को
कि कोई क्षण भर भी सोचे
मुझको
मै वही अतीत हूँ
जिसे पिछली रात यही हत्यारिन सडक निगल गई थी
मेरा लहू पोछ कर
और संवरकर
खडी है आज फ़िर से हसीन बनकर
यही दुनियाँ है और यही सडक है
हम नही है पर वही तडक- भडक है ।
------------------------शिव शम्भु शर्मा ।
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