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Wednesday 10 September 2014

ईश्वर

नदियां सिर्फ़ नदियां है
बहती हुई कई सदियां है

इन्हें किसी की भी सभ्यता से कोई वास्ता नही होता
इन्होनें कभी नही बुलाया  आदमी को कि ,.. आ मेरे पास
और बसाले अपनी सभ्यता

ये तो खुदगर्ज आदमी हैं
जिसने  उन्हें पूजकर
ईश्वर तक बनाया
इसके किनारे अपना घर बसाया

और जब नदी उफ़नकर लीलने लगती है --आदमी
तब इतना शोर क्यों
इतना चित्कार कैसा ?

सदियों से इन्ही के भरोसे क्यो रहे ?
इन्हें पूजने के बजाय

मकडजालों में
तुम बाँध भी तो सकते थे इसके किनारे
लोहें और कंक्रीट क्या नही थे
तुम्हारे पास ?
-----------------श श शर्मा ।



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