नदियां सिर्फ़ नदियां है
बहती हुई कई सदियां है
इन्हें किसी की भी सभ्यता से कोई वास्ता नही होता
इन्होनें कभी नही बुलाया आदमी को कि ,.. आ मेरे पास
और बसाले अपनी सभ्यता
ये तो खुदगर्ज आदमी हैं
जिसने उन्हें पूजकर
ईश्वर तक बनाया
इसके किनारे अपना घर बसाया
और जब नदी उफ़नकर लीलने लगती है --आदमी
तब इतना शोर क्यों
इतना चित्कार कैसा ?
सदियों से इन्ही के भरोसे क्यो रहे ?
इन्हें पूजने के बजाय
मकडजालों में
तुम बाँध भी तो सकते थे इसके किनारे
लोहें और कंक्रीट क्या नही थे
तुम्हारे पास ?
-----------------श श शर्मा ।
बहती हुई कई सदियां है
इन्हें किसी की भी सभ्यता से कोई वास्ता नही होता
इन्होनें कभी नही बुलाया आदमी को कि ,.. आ मेरे पास
और बसाले अपनी सभ्यता
ये तो खुदगर्ज आदमी हैं
जिसने उन्हें पूजकर
ईश्वर तक बनाया
इसके किनारे अपना घर बसाया
और जब नदी उफ़नकर लीलने लगती है --आदमी
तब इतना शोर क्यों
इतना चित्कार कैसा ?
सदियों से इन्ही के भरोसे क्यो रहे ?
इन्हें पूजने के बजाय
मकडजालों में
तुम बाँध भी तो सकते थे इसके किनारे
लोहें और कंक्रीट क्या नही थे
तुम्हारे पास ?
-----------------श श शर्मा ।
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