मैं रोज-रोज नही लिख सकता
क्योंकि लिखना मेरा कोइ शगल नही है
और न पेशा
न तो कोइ शौक है न ही कोई मजबूरी
न तो किसीसे किसी तरह का कोइ अनुरोध है
न ही किसी किताब में छपने की चाह
यह तो महज
बस उस अल्लहड पन सा है
जो बह उठती है कभी- कभी
उन हवाओ के झोकों की तरह
बिल्कुल अनमने से
बगैर किसी
अनुनय-विनय अथवा प्रतीक्षा के
और इस बात से भी बेखबर
शीतल कर दे किसी को
अथवा खुश्क ।
------------------श्श्श।
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