सूखी घास
पसरी जमीं थी
आपकी कमी थी
एक ऎसी नमी थी
जिसकी कोई सरज़मीं नही थी
एक आतंकी विस्फ़ोट के बाद की
पहली पैसेंजर जैसी सहमी थी
जिसमें कोई चहलकदमी नही थी
एक प्रतिक्षा थी
जिसमे गलतफ़हमी नही थी
एक तितिक्षा थी
जिसमे कोई मेंहजबी नही थी
एक प्रतिछाया थी
जिसमें कोई काया नही थी
एक उपेक्षा थी
जिसमे कोई छाया नही थी
एक पराया नुमायाँ थी
जिसमें कोई अजनबीं नहीं थी
-------------------------शिव शम्भु शर्मा ।