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Tuesday 27 August 2013

किसने बनाया ?

जिसने भगवान को बनाया
कहते हैं --
उसी ने
शैतान को भी बनाया

अब सवाल यह है
कि आखिर
इन दोनों को किसने बनाया ?
--------------शिव शम्भु शर्मा ।

Sunday 25 August 2013

कवि

तुम कवि हो तो हो
इसमे ऎसा क्या है ?

बाबर भी अपने जमाने का
एक बहुत बडा शायर था ।
------------------शिव शम्भु शर्मा ।

मार्मिक कविताए


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उसने भूख पर मार्मिक कविता लिखी
अखबारों में पर्चे छपे
विद्वानों ने चर्चे जपे

और वह पुरस्कृत हो गई
बधाईयाँ मिठाईयाँ बांटी गई

चरमरायें से
कायरो के देश में कीचडों मे जन्में
लीचडों में पलें
मनचले शोहदों ने एक दिन उसे
अकेली पाकर
बलात्कार कर दिया

और
छोड दिया उसे जीवन भर
लिखने के लिये
मार्मिक कविताए ।
-------------------------शिव शम्भु शर्मा ।

Monday 19 August 2013

लोहे के लगाम

लोहे के लगाम
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लो अब ये पुरस्कार वाले
ब्लाँगरों तक पहुँच गए
अब यहाँ भी
लोहे के लगाम होगें
घुडदौडें  होगीं

लाल फ़ुनगी लगाए घोडें
हिनहिनाएगें
प्रतिस्पर्धा की अंधी होड में
सरपट ऎड लगाए
यहाँ भी उंची छलागें होगीं
एक शोर होगा गर्द और गुबार होगा

और इस हंगामें में  कविता की
वह चमौटी गिर जाएगी
हमेशा की तरह

और फ़िर
निर्लोभ  निर्लिप्त  निष्कलुष
स्वतंत्र शांत वृक्ष
एकबार फ़िर आहें भर कर
देखते रह जाएगे
खडे
सडक किनारे ।
------------------------शिवशंभु शर्मा ।

Saturday 17 August 2013

गधे को गधे ही गधा कहते है |

गधे को गधे ही गधा कहते है
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गधे को गधे ही गधा कहते है
ये गधे नही देख पाते

गधे का हथियार
उसकी दुलत्ति का
वह प्रचण्ड वार

उसका अल्मस्त
बिन्दास कर्मठ जीवन
बिना किसी शिकवे शिकायत के
उसका मस्ती में बेपरवाह रेंकना

जो अमूमन नसीब नही होता
सभी को
ये गधे नही समझ पाते
अच्छे भले को गधा कहकर
झूम उठते है

अपनी नासमझी का या फ़िर
कुंठायी समझी का ठींकरा

इस बेचारे के सर पर
फ़ोड कर
बेचारे बेचारो पर हँसकर
चिढकर
अपनी भडास मिटाते है
गधा
कहते है ।
--------------------शिव शम्भु शर्मा ।



Wednesday 7 August 2013

नुमाइश

कविता
कविता न होकर
जब एक लत बन जाए

हर बात पर कविता
हर चीत पर कविता

पान बीडी सिगरेट तम्बाकु शराब
जैसे छुतहर व्यसनों की तरह

धुँआ उडाती
सडकों गलियारों कोनों में थूकती

उस पाजी रोग की तरह
जो  छूटने का नाम ही न ले

कविता
जब मात्र अपने नाम कमाने का जरिया
पुरस्कार पाने का  लालच
और मात्र आत्म प्रदर्शन का प्रपंच बनकर
एक बाजारू नचनियां की नुमाइश भर बन कर रह जाए

किसी इन्डस्ट्री का एक उत्पाद
बाजार में  बिकने की प्रतिस्पर्धा के कीमत की मुहर में बदल जाए
और
बंद हो  जाए चोरों मुनाफ़ाखोरों के गोदामों में
अनाजों से भरी लेबल लगी बोरियों की तरह
तब
उसका बहिष्कार कर देना एकदम उचित है
और
उसका नष्ट हो जाना तो सर्वथा उचित है ।
----------------------शिव शम्भु शर्मा ।