एक मर रही भाषा को तिल-तिल कर जलते हुए
देखता हूं
रोज-रोज
जिसे पुरस्कारों तगमों की शहतीरों बांस बल्लियों और तालियों से
जलाया जा रहा है
कही न कही
रोज-रोज ।
-----------------------श्श्श ।
देखता हूं
रोज-रोज
जिसे पुरस्कारों तगमों की शहतीरों बांस बल्लियों और तालियों से
जलाया जा रहा है
कही न कही
रोज-रोज ।
-----------------------श्श्श ।