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Thursday 12 November 2015

देश भक्त

जब अंग्रेज दुसरे रजवाडों के राज हथिया रहे थे
तब तक वे चुप थे

जब उनके राज का नंबर आया
तब वे अंग्रेजों से लडने निकले
हाँ , वे  अंग्रेजों से लडे थे
यह सच है

मगर
अंग्रेजो से लडने का मतलब हरसमय देशभक्त होना नही होता
एक बहुत बडा अंतर होता है
राजभक्त और देश भक्त मे ।
--------------------------शिव शम्भु शर्मा ।

Wednesday 16 September 2015

सुरक्षित

महान-महान विचारक ज्ञानी प्रबुद्ध-जन
अपने-अपने राजनैतिक संगठ्नों के साथ
अलग -अलग झण्डों के तले सुरक्षित
उंघा रहे है

पता नही उन्हें ,
आम जन की अलग-अलग जातियों से गिला क्यों है !
और
संप्रदायों से मलाल क्यों है ?
--------------------------------श्श्श।

Thursday 6 August 2015

रोज-रोज ।

एक मर रही भाषा को तिल-तिल कर जलते हुए
देखता हूं
रोज-रोज
जिसे पुरस्कारों तगमों की शहतीरों बांस बल्लियों और तालियों से
जलाया जा रहा है
कही न कही
रोज-रोज ।
-----------------------श्श्श ।

Friday 30 January 2015

१.
बहुत दिन हुए
चुप हुए
बहुत दिन हुए
जिए
चुपाई को जीना कैसे कहें
कैसे कहे मौन को जीवन

बहुत दिन हुए मुस्काए
बहुत दिन हुए
तुम्हें आए ।
---------------------शिव शम्भु शर्मा ।
२.
बिल्ली की तरह दबे पांव
जैसे आती है रात

बिल्कुल उसी तरह
आती है मौत
लील जाती है सब कुछ

बिल्कुल उसी तरह
जैसे शिकार निगल कर
गर्दन उठा लेता है मगरमच्छ
लौट जाता है नदी मे गुलाटी मारकर
शांत सा दीखता है नदी का तट

बिल्कुल पहले की तरह
जैसे कुछ था ही नही कभी
कोई जीवन
कोई नामोंनिशान ।
---------------------शिव शम्भु शर्मा ।


३.
सोचा नही था
कभी ऎसा भी होगा

वह जिसके अंधेरे को
हमने ही वरण किया था
आंखें मींचकर

और एक रात वही आएगा
अंधेरे में
अंधेरा बनकर

लौट कर कभी
नही जाने के लिए ।
---------------------शिव शम्भु शर्मा ।