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Friday 10 January 2014

किसी के खूंटें से

खुटों से बंधे लोग
और
खुंटो से बंधे मवेशियो के बीच
जब कोई अंतर नही रह जाता

तब मायुस होकर देखने लगता हूं आसमान
जिसके परछाई का नीला रंग सोख कर
चलता रहता है समुद्र
अनवरत

यह देख कर थोडा सुकुन मिल जाता है
थोडा सुस्ता लेता हूं
अंजुरी भर समुद्र का खारा जल
देखकर थोडा जी लेता हूं
जिसका रंग मेरे आंसुओं से मेल खाता है

और फ़िर गुम हो जाता हूं
हजारो चेहरों की भीड में पैठकर
खोजता रहता हुं
कुछ नायाब सोच के चेहरें

वैसी आँखें
जो जल और आंसुओं के बीच के रंग का समझते हो
अंतर
और जो किसी ऎठे हुए पगहें के सहारे बंधे नही हो
किसी के खूंटें से ।
---------------------शिव शम्भु शर्मा ।

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