जमीन से ।
*********************
कवि
बहुत उची उडानें भरता है
असीम
अनंत आकाश में
किसी ठौर की तलाश में
कवि की उडान देख
तालियों की गडगडाहट
नीचे बजती हैं
जमीन पर
अधिक दिनों तक नि:शब्द
नही जिया जाया जा सकता है
अकेला
शुन्य के विस्तार मे
तभी तो
कवि को भी लौटना पडता है- आखिरकर
उन पक्षियों की ही तरह
जिनका दाना-पानी जुडा होता है
केवल और केवल
जमीन से ।
--------------------------श श श...।
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कवि
बहुत उची उडानें भरता है
असीम
अनंत आकाश में
किसी ठौर की तलाश में
कवि की उडान देख
तालियों की गडगडाहट
नीचे बजती हैं
जमीन पर
अधिक दिनों तक नि:शब्द
नही जिया जाया जा सकता है
अकेला
शुन्य के विस्तार मे
तभी तो
कवि को भी लौटना पडता है- आखिरकर
उन पक्षियों की ही तरह
जिनका दाना-पानी जुडा होता है
केवल और केवल
जमीन से ।
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