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Saturday 24 November 2012

दुर्गंध


मच्छी बाजार की सडांध का भभूका
नथूनें को सिकोड देता है
मजबूर करता है
रूमाल रखने के लिये
अन्यथा हटने के लिये

शोंर भरें बाज़ार में
भूख से जूझते  अभ्यस्त लोग
नही हटते दुर्गंध सें

रोजगार मे छिपा भूख ही तो
हाकें लगाता
मोल करता

तराजू बाट लिये बैठा रहता
तौलता है भूख को भूख
किलो के भाव से
और बदल देता है
दुर्गंध को एक लजीज
सुगंधित व्यंजन की खूशबु में

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