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Monday 26 November 2012

समुद्र तट पर



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एक लडकी रूठती है
एक लडका मनाता है
फ़िर
लडका रूठता है
अब लडकी मनाती है

उन्हें देखकर एक कवि  अपनी कविता साधनें
रोज-रोज तट पर  आता है
प्रेम के बीच की बारीकियों को
टांकता है--- कागज पर
अपने शोध का विषय बनाकर
सोचता है
वह प्रेम के एक नये अंश का काव्य लिख रहा है

सदियों से जारी यह खेल कोइ नया नही है
और इसपर इतना कुछ  लिखा जा चुका है
कि और कुछ भी लिखने की गुंजाइश नही है
---------गंभीर समुद्र यह जानता है

अन्जान कवि  कविता में अपनी प्रेयसी को निहारता है
और समुद्र --अपने तट को

---ये दोनो नही मानते

न समुद्र मानता है
न कवि मानता है

-------उपर खडा चांद मुस्कुराता है
--वह दोनो को जानता है ।
-----------श.श.श..

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