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Saturday 5 October 2013

प्रेम

सुनो ! हे कविवर ! हे महात्मन !
सुनो !
कभी आत्मा के अस्तित्व के विरूद्ध मत लिखना
ईश्वर
धर्म
संप्रदाय
जात और
रूढियों के विरूद्ध तो कतई नही लिखना
भूल कर भी
वर्ना इस देश से निकाले जाने की संभावनायें  बढ सकती है
या बेमौत मारे जा सकते हो

हे मानव श्रेष्ठ !
अगर लिखना है तो प्रेम पर लिखो
सुरा सुन्दरी और सुराहीदार गर्दन पर लिखो
उस प्रेम पर लिखो
जिसमे प्रेमी युगल आलिंगनबद्ध होने की बाट जोहते है
जिसमे प्रतीक्षा विरह अश्रु और मिलन की बात होती है
इश्क और सूफ़ियानों की मर्दानी जात होती है

हे ! विद्वन !
यही वह सरल पथ है
वह सरल भाषा है
जिसका अर्थ जलचर नभचर और उभयचर सभी समझते है

हे ज्ञान चक्षुवर !
यही वह गलियाँ है जो उन महलों के किलों तक पहुचती है
जहाँ राजे महाराजे विराजते है
और बाँटते है मोहरें रेवडियाँ

और इस तरह लोकप्रियता की झडियाँ लग जायेगीं
फ़िर आपकी लिखी किताब तो क्या
एक मामूली तश्वीर भी खरीदे जाने के लिये मारामारी होगी
हे अधिष्ठाता ! सुनो !
सदियो से
यह देश ऎसा ही है ।
----------------------------शिव शम्भु शर्मा ।


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