नीम का पेड ( अघोरी पर एक लेख देखकर )
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रेलवे के उस हाल्ट पर
धूल धुसरित नीम का वह पेड
साधनारत
हिलता लचकता मुस्काता खडा है
यात्रियों को छाह देता
मुंह धोनें के लिये दातून देता
हवाओ को शुद्ध करता रहता
गिलहरियों पक्षियों चीटियों
कभी दुत्कारता नही
अपना फ़ल देता है
जीवन देता है
किसी से अपना गम नही कहता
न मांगता है न उलाहने देता
और न श्राप देता
कितना शांत अविकल खडा है
वह प्यारा नीम
उस धूनी रमाये अधोरी से बहुत उंचा है
जो गालियां बकता मांस खाता
पेशाब पीता रहता है
केवल अपने मोक्ष के लिये
पेड अधोरियों की तरह
स्वात:सुखाय नही होते
नही चाहते
नही साधते
केवल अपने लिये किसी
कुत्सित इच्छित कामनाओं का जखीरा
हंसते झूमते रहते पुरी कायनात
के प्रेम मे मगन
जीवन दूत
मुझे उस नीम के पेड से प्यार है ।
-----------शिव शम्भु शर्मा ।
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