लंबी तान के न सोऒ
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सब लोग नही देख सकते
कभी सभी को
मुनासिब नही है यह कभी
नही देखते तो क्या ?
नही समझते तो क्या ?
तुम चलना छोड दोगे
उस पथ पर
जिस पथ पर तुमने
चलने की ठानी है ?
पृथ्वी चाँद सूरज सितारे
कब किसकी परवाह करते है
चलते नही रहते है क्या ?
कौन रोक सका है उन्हे
जरा बताओ ?
ये अर्थहीन विषैले चमक के पीछे
बेतरतीब बेतहाशा दौडती भीड
नही समझती तो न समझे
तो तुम भी समझना छोड दोगे क्या ?
रूको नही देखो नही
कभी पलट कर
अपना काम किया करो
बिना किसी रूकावट के
तुम तो हो ही देखने के लिये
खुद को
यही बहुत है जिन्दगी के लिये
खुशी के लिये
हां ! अकेला ही सही
अकेला आदमी
आदमी नही होता क्या ?
-----------------शिव शम्भु शर्मा ।
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