मोटर साइकिल कार और एपार्टमेन्ट के इस नये दौडते युग में भी
मै साईकिल से चलता हूं
ये शौक नही है मेरा
और मै अकेला भी नही हूं
एक अंतहीन भूख लिये
मेरे साथ कई दिहाडी खटने वाले
सफ़ाई पुताई करनेवाले धसियारें और
अधमरें मजूर भी चलते है
मेरे सामने हजारो मलीन मुर्झाये चेहरे है
उजडे घर बेबश बीमार लाचार बच्चे है
और एक बेहया देश है
हर रोज मै
ऎटलस साईकिल के ट्रेड मार्क पर खुदे चित्र में
एक अधनंगे आदमी को अपने कंधे पर पृथ्वी ढोते देखता हूं
मेरे कंधे मजबूत है
मै रो नही सकता
हँस भी नही सकता
और न कर सकता हूं विलाप
औरतों और बच्चों की तरह
मेरे हाथों मे बहुत दम है
नही ले सकता किसी की भी सहानुभुति
मेरे कंधों के भार मुझे
इसकी
इजाजत नही देते ॥
---------------शिव शम्भु शर्मा ।
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