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नदी हमारे सामने बह रही है
तट पर तुम भी हो
तट पर मैं भी हूं
जब मैं तुम्हें देख रहा होता हूं
तब तुम मुझे नही देखती
कुछ और देख रही होती हो
जब तुम मुझे देख रही होती हो
तब मैं भी कुछ और देख रहा होता हूं
इस तरह देखते हुए भी हम वह नही देख पाते
जो हम दोनो को यह बहती नदी देख रही होती है
हमारी नजरें जब मिलती है
तब तक नदी बह चुकी होती है
हम दोनो अपनी-अपनी राह लौटने लग जाते हैं
बगैर कुछ बोले बतियाए
हमें लौटता देख किनारे का एक पेड सहसा मुस्कुरा उठता है
उसकी जडें जो पानी में हैं
वह जानता है नदी अब भी बह रही हैं
रेत के नीचे
हमारी दृष्टि से परे
हमारी सोच से परे ।
-----------------------------शिव शम्भु शर्मा ।
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